कपालभाती प्राणायाम (Kapalbhati Pranayama) क्यों करे ? | यज्ञ चिकित्सा

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"वैश्विक समस्याओं के प्रति जंग"

भारतीय संस्कृति में यज्ञ, योग एवं आयुर्वेद जैसी अमूल्य विद्याएं एवं विधाएं हैं, जो इस संस्कृति की मुकुटमणि है। इतिहास की ओर दृष्टि डालें तो भगवान् श्रीराम, भगवान् श्रीकृष्ण से लेकर राजा- महाराजाओं, ग्रामवासियों व अरण्यवासि-ऋषियों की कुटियों तक नित्य व नैमित्तिक यज्ञ का प्रचलन देखने को मिलता है, जो सार्वभौमिक, वैज्ञानिक एवं पंथनिरपेक्ष पावनी परंपरा है।
पंच-महाभूतों से निर्मित इस जगत् का जीव मात्र प्रयोग ले रहा है। सभी लोग एक ही वायु में श्वास लेते, एक ही सूर्य से ऊर्जा लेते, एक ही जल का पान करते, एक ही भूमि पर विचरण करते हैं तथा एक ही आकाश-मंडल के नीचे बसते हैं। हम सब समान हैं एक हैं, चाहे हिंदू-सिख-ईसाई-मुसलमान आदि जो भी है सब मनुष्य है। मनुष्य जो सोच-विचार पूर्वक कार्य करतें है या कर सकते हैं। हम सब एक दिव्य-शक्ति(ईश्वर) की संतान है, जिसने हमें पंचभूतों से निर्मित जगत् प्रदान किया है। इन्हीं पंचभूतों के बीच हमारा पूरा जीवन चलता है व समाप्त हो जाता है। मनुष्य का जीवन इस पंच-भूतात्मक प्रकृति के संतुलन में है। आज निरंकुश भोगवाद के कारण प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से पर्यावरण प्रदूषित हो चुका है। प्रदूषण एक ऐसा जहर है, जो कालांतर में अपने ही जनक को भस्मासुर की तरह भस्म कर देता है। आज हमने वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण से लेकर आण्विक-प्रदूषणों को जन्म दिया है। 130 देशों के 2500 साइंटिस्टों की टीम ने अपनी रिपोर्ट "इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंजिंग" में जो बातें कही है वह किसी संदेह की गुंजाइश नहीं रखती। धरती का तापमान इस सदी में 1.5 डिग्री बढ़ जाएगा, जिससे मौसम में आमूलचूल परिवर्तन होंगे। ग्लेशियर तेजी से पिघल जायेगें, समुद्र तटीय शहर संकट से घिरे होंगे, बीमारियों का खौफनाक हमला होगा, जीवनदायिनी मां गंगा सूख जाएगी, कई पेड़-पौधें व पशु-पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त हो जायेंगी, फसलों की पैदावार घटेगी, बूंद-बूंद को मोहताज होगी धरती व कहीं बाढ़, तो कहीं सूखा,तो कहीं तूफान व अतिधूप पड़ेगी, फसलों की पैदावार घटेगी, जिससे बहुत बड़ी जान-माल की हानि होगी। शताब्दी के अंत तक पूरी दुनिया में एक करोड़ से भी ज्यादा लोगों के सामने पीने के लिए पानी नहीं होगा। इस रिपोर्ट में कहे अनुसार आज होने भी लग चुका है। आज भारत जैसे देश की 40% नदियां सूख चुकी है,55% कुएं सूख चुके हैं, 45% भूगर्भ जलस्तर नीचे जा चुके हैं। पूरी दुनिया के 10 बड़े ऐसे शहर है, जहां पर पानी की आपूर्ति कुछ ही दिनों के बाद संकट होगा, मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक जल का भय जहां एक ओर है, तो वहीं दूसरी ओर वायु का। मनुष्य अन्न के बिना 3 महीने, जल के बिना 3 सप्ताह जीवित रह सकता है, परंतु वायु के बिना 3 मिनट भी नहीं। वही वायु जो जीवन देती हैं, आज जानलेवा हो चुकी है।
पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण का तांडव हो रहा है, हर 8 में से एक व्यक्ति वायु- प्रदूषण से मृत्यु को गले लगा रहा है, जिसमें 36% लोग फेफड़ों के कैंसर से मर जाते हैं। भारत ही नहीं पूरी दुनिया में इसके खौप का डंका बज चुका है तथा वायु-प्रदूषणरूपी भस्मासुर पूरी मानव सभ्यता के साथ-साथ अन्य जो पशु-पक्षी, कीट-पतंगें, वनस्पति-औषधियों से लेकर संपूर्ण अस्तित्व को निगलने को तैयार है। विश्व स्वास्थ्य संगठन {WHO} के आंकड़ों के अनुसार 70 लाख से अधिक लोग केवल वायु -प्रदूषण के कारण मौत के मुह में समा जाते हैं। पूरी दुनिया में प्रकृति के साथ अब मनुष्य के ऊपर भी खतरे की घंटी बज चुकी है। यह ग्लोबल वार्मिंग अब "ग्लोबल वार्निंग" हो चुकी है, जिसका समाधान है -- यज्ञ, वृक्षारोपण एवं वैदिक जीवन-शैली।
वेद का उद्घोष है -
"अयं यज्ञो भुवनस्य नाभिः" अर्थात् यज्ञ पंचभूतात्मक देह से लेकर ब्रह्मांड तक में स्वास्थ्य एवं संतुलन कायम करता है।
वैज्ञानिक शोध दर्शाते हैं, कि यज्ञाग्नि में उत्तम गुणवत्तायुक्त घृत-जड़ी-बूटियां एवं समिधा आदि की मंत्रोच्चारण पूर्वक आहुति देने पर वह द्रव्य अत्यंत सूक्ष्म व आरोग्यवर्धक होकर हमें स्वास्थ्य एवं दीर्घायु प्रदान करता है। यज्ञ अस्थमा, कैंसर से लेकर करोना जैसी जानलेवा रोगों से बचाने के साथ ही तनाव, अनिद्रा, अवसाद आदि मानसिक रोगों को दूर कर शांति व सौमनस्य प्रदान करता है । यज्ञ से विषैली गैसों में भारी मात्रा में कमी आती है व जानलेवा बैक्टीरिया, वायरस, फंगस आदि नष्ट होते हैं एवं रेडिएशन को भी कम करता है। यज्ञ भूमि की उर्वरा शक्ति एवं फलों के एक्टिव कंपाउंड को बढ़ाता है तथा रोगों की रोकथाम भी करता है। यज्ञकृषि से उत्पन्न अन्न-फल आदि पोषक तत्वों से युक्त एवं स्वादिष्ट होते हैं। यज्ञ उत्तम वर्षा तथा जलाशयों का शोधन करने वाला होता है। यज्ञ जड़ एवं चेतन दोनों में सात्विकता का संचार करता है। यज्ञ प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों प्रकार का लाभ प्रदान करता है ।यज्ञ भौतिक जीवन में धन-धान्य आदि ऐश्वर्य एवं आध्यात्मिक जीवन में मानवीय चेतना का उत्कर्ष करके अतिमानस चेतना की ओर अग्रसर करता है। यज्ञ से अभ्युदय एवं निश्श्रेयस दोनों की सिद्धि होती है।
संसार का प्रत्येक मनुष्य धर्म के नाम पर जो भी क्रिया कलाप करता है उसका भी प्रयोजन यही है
अतः यज्ञ ही परम धर्म है व यज्ञ को जीवन में धारण करना अर्थात् यज्ञ करना तथा यज्ञीय जीवन जीना यही सच्ची धार्मिकता है। ऐसे धर्म की रक्षा करना ही हमारे जीवन व जगत् की रक्षा करना है तथा धर्म की रक्षा न करना ही जीवन व जगत् को नष्ट करना है। धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षित:।तो आइए हम संकल्प लें संसार के श्रेष्ठतम कर्म यज्ञ को अपनाएं, पिंड और ब्रह्मांड में संतुलन कायम करने वाले यज्ञ को जीवन का अभिन्न अंग बनाएं एवं प्रकृति मां के प्रति अपने ऋणों को अदा करें।
विश्व स्वास्थ्य का एक नारा, यज्ञ से होगा जग उजियारा
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